व्यक्ति की मौत के बाद अस्पताल के डॉक्टरों ने उसकी पत्नी से कहा कि शव देने के लिए 15,000 रुपए लगेंगे, तब ही शव दिया जाएगा वरना हम लोग ही अंतिम संस्कार कर देंगे। इसके बाद पत्नी हापुड़ आ गई और पैसों के इंतजाम में लग गई लेकिन उससे शव के लिए 15,000 का इंतजाम नहीं हो सका और वो अस्पताल द्वारा अंतिम संस्कार की बात सोचकर शव लेने ही नहीं गई।इसके बाद मृतक की पत्नी हापुड़ से अपने दो बच्चों को लेकर अपने गांव चली गई।
अस्पताल को करीब ढाई महीने बाद शव की सुध आई। इसके बाद मेरठ अस्पताल ने शव को हापुड़ स्वास्थ विभाग के सुपुर्द कर दिया और हापुड़ स्वास्थ विभाग ने तीन दिन पहले शव को जीएस मेडिकल कॉलेज में रखवा दिया। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग प्रशासन के सहयोग से परिजनों को ढूंढ़ने लगे। आज जब परिजनों का पता चला तो विभाग ने शव उन्हें सौंप दिया और एक NGO के माध्यम में शव का अंतिम संस्कार करा दिया गया।
इस घटना के बाद एक बार फिर से स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। कोरोना संक्रमित शव को अस्पताल ज्यादा दिनों तक अपने पास नहीं रख सकते हैं, लेकिन इस मामले में शव ढाई महीने तक अस्पताल में रहा।

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