इस धरना प्रदर्शन मे महानगर के सुप्रसिद्ध चिकित्सक एवं उद्योगपति भी बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं एवं राष्ट्रहित मे 8 अगस्त प्रातः 9 बजे बसों द्वारा मेरठ से दिल्ली कूच करेंगे।
भारत सरकार से अपनी प्रमुख मांगों के विषय मे विस्तार पूर्वक बात करते हुए उन्होंने बताया की देश को आजाद हुए 74 वर्ष हो चुके हैं परंतु आज भी देश के संविधान मे लगभग 222 कानून ऐसे हैं जो अंग्रेजों के जमाने में बनाए गए थे और आज भी उसी प्रकार चल रहे हैं, हिमांशु गोयल ने बताया की देश का संविधान सम $ विधान ना होकर बहुविधान के रूप मे कार्य कर रहा है। इन बहुविधानों के कारण देश मे ढेरों समस्याएं ऐसी हैं जिनका कोई स्थायी इलाज नहीं है। देश में हिंदू के लिए अलग विधान, मुस्लिम के लिए अलग विधान, पारसी के लिए अलग विधान और क्रिश्चियन के लिए अलग विधान है जबकि आर्टिकल 44 कहता है इस देश में एक समान नागरिक संहिता होनी चाहिए।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया की आर्टिकल 16 कहता है की सबको समान अवसर मिलना चाहिए। आईएएस की एक परीक्षा होती है, इंजीनियरिंग के लिए एक एग्जाम होता है, मेडिकल के लिए एक एग्जाम होता है, नीट का एक पेपर होता है, एनडीए का भी एक पेपर होता है, क्लेट का एक पेपर आता है, बैंक के लिए आजकल एक एग्जाम शुरू हो गया है और रेलवे के लिए भी एक एग्जाम शुरू हो गया है। पेपर एक है लेकिन सिलेबस अनेक, पेपर एक है लेकिन एजुकेशन बोर्ड अनेक, सीबीएसई का बच्चा कुछ अलग पड़ रहा है आईएससी का बच्चा कुछ अलग पड़ रहा है, यूपी बोर्ड का बच्चा अलग पड़ रहा है, महाराष्ट्र बोर्ड का बच्चा अलग किताब पढ़ रहा है तो सबको समान अवसर मिलेगा? इसीलिए सीबीएसई आईसीएसई को मर्ज कर एक देश-एक एजुकेशन बोर्ड लागू करना जरूरी है। जिस प्रकार केंद्रीय विद्यालय में पूरे देश में एक किताब चलती है वैसे ही एक देश-एक सिलेबस लागू किया जा सकता है। बिहार का बच्चा हिंदी में पढ़ें, बंगाल का बच्चा बंगाली में पढ़े, गुजरात का बच्चा गुजराती में पढ़े, महाराष्ट्र का बच्चा मराठी में पढ़े लेकिन कंटेंट एक होना चाहिए।
व्यापारी नेता विपुल सिंघल ने बताया की देश मे घुसपैठ एक बड़ी समस्या है जिसको रोकने के लिए कठोर कानून होना ही चाहिए ऐसे मे घुसपैठ नियंत्रण के लिए अलग कानून की जरूरत नहीं है आईपीसी में ही एक सेक्शन जोड़ने की जरूरत है। उन्होंने कहा की धर्मांतरण के लिए अलग कानून की आवश्यकता नहीं है बल्कि आईपीसी में एक सेक्शन जोड़ने की जरूरत है। इसी प्रकार जनसंख्या विस्फोट के लिए अलग कानून की जरूरत नहीं है बल्कि आईपीसी में एक सेक्शन जोड़ने की जरूरत है, गौ तस्करी रोकने के लिए अलग कानून की जरूरत नहीं है बल्कि आईपीसी में एक सेक्शन जोड़ने की जरूरत है। लव जिहाद के लिए अलग कानून की जरूरत नहीं है बल्कि आईपीसी में एक सेक्शन जोड़ने की जरूरत है। अंगरजों के जमाने से चले आ रहे कानूनों में छोटे-छोटे बदलाव कर देश की संप्रभुता और अखंडता को बचाया जा सकता है।
भारत में अपराध के लिए 50 कानून चल रहे हैं, सबको मिलाकर यूनिफार्म पीनल कोड अर्थात एक देश-एक दंड संहिता बनाई जा सकती है। नागरिक अधिकार के लिए 36 कानून चल रहे हैं सब को मिलाकर यूनिफार्म सिविल कोड अर्थात वन नेशन-वन सिविल कोड बनाया जा सकता है। सारे एजुकेशन बोर्ड को मिलाकर वन नेशन वन एजुकेशन बोर्ड बनाया जा सकता है।
मंदिरों पर नियंत्रण के लिए 30 कानून चल रहे हैं और 18 राज्यों में चार लाख मंदिर सरकार के कब्जे में है लेकिन एक भी चर्च एक भी मजार एक भी दरगाह और एक भी मस्जिद सरकार के कब्जे में नहीं है, इसलिए हमारा कहना है सरकार उन सभी 30 कानूनों को खत्म करें या सभी धार्मिक स्थानों को मुक्त कर दें या सभी धार्मिक स्थानों के लिए एक कानून बना दे।
अंग्रेजों ने जितने कानून बनाए थे वह सब भारत को गुलाम बनाने के लिए बनाए थे, न्याय देने के लिए नहीं। यदि अंग्रेजी कानून अच्छे होते तो अंग्रेजों को भी सजा मिलती लेकिन एक भी अंग्रेज को सजा नहीं मिली। सजा मिली तो केवल आजादी मांगने वालों को। 1857 की क्रांति को खत्म करने के लिए 1860 में इंडियन पीनल कोड बनाया गया, 1861 में पुलिस एक्ट बनाया गया, मंदिरों पर कब्जा करने के लिए 1863 में कानून बना, 1874 में एविडेंस ऐक्ट बनाया गया।
डॉ. सुशील सूरी ने कहा की 222 अंग्रेजी कानून आज भी चल रहे हैं। हमारी मांग है की सरकार इन्हें खत्म करें और नए कानून बनाए और यह मात्र 6 महीने में संभव हो सकता है क्योंकि हमारे पास लगभग 1000 रिटायर्ड जज है लगभग 1000 रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं लगभग 1000 रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी हैं लगभग 1000 रिटायर्ड लॉ प्रोफेसर हैं। सबको उपयोग किया जाए 222 कानून मात्र 6 महीने के अंदर खत्म किए जा सकते हैं और नए कानून बनाए जा सकते हैं।

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