मेरठ 24 जनवरी (CY न्यूज) पूरे उत्तर भारत में पहली बार व्यापक एक्स्ट्राकॉर्पोरियल मेंब्रेन ऑक्सिजनेशन (ई.सी.एम.ओ) की मदद से फेफड़े की दोतरफा जटिल प्रत्यारोपण सर्जरी की गई जिससे कोविड के कारण बुरी तरह खराब हो चुके फेफड़े से पीड़ित 55 वर्षीय व्यक्ति की जान बच गई। मेरठ के 55 वर्षीय ज्ञानचंद क्रोनिक ओब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सी.ओ.पी.डी) से पीड़ित थे और उन्हें कोविड संक्रमण भी हो गया था। इस वजह से मरीज गंभीर अस्थिरता का शिकार हो गया था। फेफड़ा बुरी तरह खराब हो जाने के कारण उन्हें हाई फ्लो ऑक्सीजन दिया गया और कुछ अंतराल पर बी.आई.पी.ए.पी सपोर्ट की भी जरूरत पड़ी। उसकी जान बचाने का एकमात्र विकल्प फेफड़े का प्रत्यारोपण ही बचा था, इसे देखते हुए उसकी संपूर्ण जांच की गई और डा.राहुल चंदोला के नेतृत्व में हार्ट लंग ट्रांसप्लांट टीम ने उसे प्रत्यारोपण कराने वाले मरीजों की सूची में शामिल कर लिया। जल्द ही अहमदाबाद में ब्रेन हेमरेज से एक ब्रेन डेड दानकर्ता मिल गया। डॉक्टरों की टीम उसके फेफड़े निकालने के लिए तत्काल अहमदाबाद पहुंच गई। मरीज की नाजुक स्थिति को देखते हुए अस्पताल प्रशासन ने सभी जरूरी प्रबंधन किया और समयबद्ध परिशुद्धता के साथ हर जरूरी कदम उठाया। अहमदाबाद के हवाई अड्डे से लेकर सिविल अस्पताल के बीच ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया और तत्परता से फेफड़े को पहुंचाने के लिए आई.जी.आई इंटरनेशनल एयरपोर्ट से लेकर मैक्स सुपर स्पेशियल्टी अस्पताल, साकेत के बीच भी ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। महज 3 घंटे में 950 किमी की दूरी तय करते हुए बिना किसी व्यवधान के फेफड़ों को ट्रांसप्लांट कर दिया गया। मैक्स हॉस्पिटल में ट्रांसप्लांट सर्जन, पल्मोलॉजिस्ट, क्रिटिकल केयर स्पेशियलिस्ट, कार्डियक एनेस्थेटिस्ट, पर फ्यूजनिस्ट और कार्डियोपल्मोनरी रिहैब के डॉक्टरों की अत्यंत अनुभवी टीम ने इस अत्यंत जटिल ऑपरेशन को सफल अंजाम दिया जो उत्तर भारत का पहला ऐसा ऑपरेशन था। मरीज की स्थिति के बारे में मैक्स हॉस्पिटल में प्रमुख निदेशक और पल्मोनोलॉजी के प्रमुख डा.विवेक नांगिया ने बताया, 'हमारे पास मरीज को बुलस लंग बीमारी की स्थिति में लाया गया था जिसमें मरीज के फेफड़े में कई फफोले यानी बैलून जैसी आकृति बन चुकी थी। इस कारण मरीज को सांस लेने में काफी तकलीफ हो रही थी। मरीज को लगभग एक साल तक ऑक्सीजन पर रखना पड़ा था और स्थिति सुधर नहीं रही थी। इसके अलावा कोई इलाज भी नहीं था। सभी तरह के चिकित्सा उपाय कर लेने के बावजूद हमें सफलता नहीं मिल रही थी तो हमने फेफड़े का ट्रांसप्लांट कराने का निर्णय लिया।' डा.राहुल चंदोला इस बारे में बताते हैं, 'ज्ञानचंद की यह बीमारी एडवांस स्टेज में पहुंच चुकी थी। मरीज को आॅपरेशन के बाद भी दस दिन तक विस्तृत ई.सी.एम.ओ लाइफ सपोर्ट की जरूरत पड़ी। इसके बाद धीरे-धीरे उसे वेंटिलेटर से हटाना शुरू किया गया। यह बहुत जटिल सर्जरी थी और हमने उत्तर भारत में पहली बार विस्तृत लाइफ सपोर्ट पर रखते हुए इस तरह का दोहरा लंग ट्रांसप्लांट को सफल अंजाम दिया। मरीज अब पूरी तरह रिकवर कर चुका है और उसके दोनों फेफड़े अच्छी तरह काम कर रहे हैं।' ज्ञानचंद अपनी जान बचाने के लिए मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल साकेत और समस्त टीम के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। कई वर्षों बाद अंगदान के जरिये जीवनदान पाने वाला यह मरीज अब खुद बिना किसी दिक्कत के सांस लेने में सक्षम है।
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