Saturday, 9 July 2022

डिजिटल दुनिया की मोबाइल-लैपटॉप जैसी डिवाइस तोड़ रही हैं आपके पैरेंट बनने का सपना।

मेरठ 08 जुलाई (CY न्यूज) शादी के बाद हर कपल का सपना होता है उनकी घर में बेबी आए और घर की रौनक बढ़ जाएं। लेकिन कई बार शारीरिक समस्याएं उनके इस ख्वाब को पूरा नहीं होने देतीं। फर्टिलिटी (प्रजनन क्षमता) से जुड़ी दिक्कतें हंसते-खेलते परिवारों की चिंता बढ़ा रही है। ऐसे होने क्या कारण हैं और इनसे कैसे बचा जा सकता है, गुंजन आई.वी.एफ वर्ल्ड ग्रुप की चेयरमैन डा.गुंजन गुप्ता गोविल का कहना है कि नई-नई टेक्नॉलजी ने आज बहुत सारे काम आसान जरूर कर दिए हैं, लेकिन इन आविष्कारों का इंसान की सेहत पर बुरा असर भी पड़ रहा है। स्मार्टफोन्स का बेतहाशा इस्तेमाल, लैपटॉप, कम्प्यूटर और वायरलेस कनेक्शन जैसी चीजें अब जिंदगी का जरूरी हिस्सा बन गई हैं। लेकिन ये तमाम चीजें न सिर्फ व्यक्ति को खुद पर निर्भर बना रही हैं, बल्कि हेल्थ को भी प्रभावित कर रही हैं। कोरोना महामारी के बाद से तो जैसे डिजिटल बूम आ गया है और ये सिर्फ ऑनलाइन पढ़ाई तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि लोग मनोरंजन के लिए भी ओ.टी.टी प्लेटफॉर्म्स पर समय गुजार रहे हैं। एक तरह से इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स ने लोगों को अपना गुलाम बना लिया है। डा.गुंजन गुप्ता का कहना है कि आज हम डिजिटल दौर में हैं और इसने लाइफस्टाइल पर बहुत बुरा असर डाला है, जिससे कई तरह की बीमारियां होने लगी हैं। इन इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस के कारण इंफर्टिलिटी यानी बांझपन की परेशानी भी बढ़ी है। पुरुष और महिला दोनों ही इसका बुरी तरह शिकार हुए हैं। स्टडीज से पता चलता है कि भारत में स्मार्टफोन और मोबाइल टॉवरों से होने वाला इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन अन्य देशों के तुलना में 10-15 फीसदी ज्यादा है। इस तरह के रेडिएशन के कारण भारत में 10-12 फीसदी कपल्स अलग-अलग किस्म की फर्टिलिटी समस्याओं से जूझ रहे हैं। स्मार्टफोन का ज्यादा उपयोग करने से पुरुषों में स्पर्म काउंट घटने का खतरा रहता है, साथ ही उनके अंदर फुर्ती और कंसंट्रेशन की कमी भी हो जाती है। लंबे समय तक पॉकेट में मोबाइल रखने और गोद में लैपटॉप रखने से स्पर्म काउंट और गुणवत्ता खराब होती है, क्योंकि पुरुषों में स्पर्म प्रोड्यूस करने वाले जो टेस्टेस होते हैं उनपर हीट का असर महिलाओं की ओवैरीज की तुलना में ज्यादा होता है। गर्मी और रेडिएशन स्पर्म सेल की ग्रोथ को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। रेडिएशन के कारण डी.एन.ए भी डैमेज हो जाता है जिससे सेल्स की स्वतः मरम्मत की कैपेसिटी कम हो जाती है। इस तरह रेडिएशन फर्टिलाइजेशन में रुकावट पैदा करता है, जिसका नतीजा ये होता है कि या तो महिलाएं कंसीव नहीं कर पाती हैं या फिर मिसकैरेज हो जाता है। रेडिएशन के अलावा भी कई कारण है जैसे कि ज्यादा टी.वी देखने से जंक फूड खाने की आदत लग जाती है और व्यक्ति आलसी भी होने लगता है। स्टाइल की वजह से या स्टेटस सिंबल की वजह से, लोग शराब और तंबाकू का सेवन भी कर रहे हैं। जंक फूड खाने और अव्यवस्थित लाइफस्टाइल इंसान को मोटापे की तरफ ले जा रहे हैं, और ये भी बांझपन का प्रमुख कारण है। डा..गुंजन गुप्ता के अनुसार डिजिटल जमाने की इन चुनौतियों ने जहां परिवारों को निराश किया है, वहीं टेक्नॉलजी के कारण ऐसे घरों में किलकारियां भी गूंज रही हैं। असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेकनीक ऐसे लोगों के लिए वरदान है जो मां-बाप बन पाने में सफल नहीं पाते। रोबोट की मदद से काम करने वाली इस टेक्नीक से मां बनना बहुत ही आसान और सुरक्षित हो गया है और इसके कोई दुष्परिणाम भी नहीं हैं।

No comments:

Post a Comment

प्रधानाध्यापिका द्वारा हुआ पुरातन छात्र सम्मान समारोह का आयोजन।

मेरठ : उच्च प्राथमिक विद्यालय गगोल मेरठ में स्कूल की प्रधानाध्यापिका डा.कविता गुप्ता के द्वारा पुरातन छात्र सम्मान समारोह का आयोजन किया गया।...