संज्ञान में लाया गया कि मेरठ से होकर गुजरने वाली काली नदी का उदगम स्थल मुजफ्फरनगर जनपद में ग्राम अंतवाडा के पास है। प्रवाह में यह नदी नागिन नदी कहलाती है क्योंकि इसमें पानी की अत्यंत अल्प मात्रा रहती है जिसमें मुख्यतः गंग नहर का छोड़ा गया जल तथा अन्य प्राकृतिक स्रोतों का पानी बहता है । वर्षा ऋतु के अतिरिक्त अन्य ऋतुओं में पानी की मात्रा नगण्य ही रहती है । यह नदी जनपद मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलंदशहर व अलीगढ़ से गुजरते हुए 500 कि.मी. की दूरी तय कर जनपद कन्नौज के पास ग्राम माधवपुर में गंगा नदी में मिल जाती है।
मुज़फ्फरनगर से चलकर मेरठ में ग्राम सैनी तक यह नदी वर्षा ऋतु के अतिरिक्त सूखी रहती है। ग्राम सैनी में आकर यहां पर बनी कुछ 10 से अधिक उद्योगों के डिस्चार्ज से यह गंदा पानी सींचने का काम करती है, जिस कारण इस क्षेत्र में यह नाले का प्रारूप दिखाई देती है ।
ग्राम सैनी में ग्राम वासियों द्वारा मवाना रोड सैनी पुल के पास उद्योगों से एक किलोमीटर पहले बांध लगाकर पानी को रोक रखा है। जहां पर बांध लगा है वहां तक नदी सूखी रहती है तथा पेपर मिलों के डिस्चार्ज के कारण रसायनिक तत्वों के पानी से यह गंदी हो जाती है। ग्रामवासियों का मानना है कि उद्योगों के डिस्चार्ज की पाइपलाइन को भूतल में दबा कर काली नदी में ला कर छोड़ दिया गया है द्य ग्राम सैनी के बाद कुछ हिस्सा ग्राम सिलारपुर, ग्राम रसूलपुर औरंगाबाद, ग्राम छिल्लोरा, ग्राम गांवड़ी होते हुए जाता है।
उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा चलाई जा रही नदियों का पानी निर्मल करने हेतु योजना के तहत काली नदी की सफाई मेरठ में की जा रही है । जनपद मेरठ में काली नदी की लंबाई लगभग 40 किलोमीटर है।
ग्राम सैनी के पश्चात जहां जहां से उद्योगों का पानी गुजरता है उन सभी ग्रामों में लोगों को कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ रहा है।
ग्राम सैनी में स्थित उद्योग शून्य उत्प्रवाह व्यवस्था एडॉप्ट करने के पश्चात भी पाइप के माध्यम से मिल से दूर जा कर गंदा पानी प्रवाह किया जा रहा है।
इस क्षेत्र के ग्रामवासियों द्वारा लगातार इस परेशानी को अलग अलग स्तर पर लिख कर दिया जा चुका है परंतु उद्योगपतियों के प्रभाव के चलते कोई सुनवाई किसी भी स्तर पर नही हो रही है।
निवेदन किया गया कि मंत्री जी द्वारा स्वयं अपनी अध्यक्षता में एक जांच कमेटी गठित कर ग्राम सैनी जनपद मेरठ में उद्योगों द्वारा गंदा रासायनिक पानी छोड़े जाने से रोके जाने की व्यवस्था कराई जाए ऐसी अपेक्षा संस्था सदस्यो तथा ग्रामवासियो द्वारा की जाती है।
संज्ञान में यह भी लाया गया कि जल संरक्षण हेतु प्रधानमंत्री की योजना कैच द रेन के तहत प्रशासन के साथ समाज सेवी संस्थाएं भी इस मुहिम में लगी हुई हैं। सरकार के द्वारा वाटर हार्वेस्टिंग के लिए लोगों को प्रेरित भी किया जा रहा है तथा विकास प्राधिकरण द्वारा 300 वर्ग मीटर से ज्यादा के मानचित्र वाटर हार्वेस्टिंग की अनिवार्यता के साथ ही स्वीकृत किये जाते हैं। समाजसेवी संस्थाएं भी घर-घर जाकर लोगों को वाटर हार्वेस्टिंग के लिए प्रेरित कर रही हैं ,जिन कारणों से कुछ जगहों पर भूजल का स्तर गिरने से रुका है अथवा कुछ जगहों पर जल स्तर बढ़ा भी है। प्रधानमंत्री की योजना कैच द रेन के तहत हमें वर्षा ऋतु के जल का संचयन व संरक्षण भी करना जरूरी है।
मेरठ में अधिकांश घर 100 से 200 वर्ग मीटर की भूमि में निर्मित है तथा घनी आबादी वाले क्षेत्रों में खाली जमीन तो जैसे दिखती ही नहीं है। मकान के बाद नाली , नाली के बाद सड़क और फिर से नाली और फिर मकान बने हैं तथा दूर-दूर तक पेड़ अथवा खाली जमीन नजर नहीं आती। ऐसे में वाटर हार्वेस्टिंग कराना उन छोटे मकानों में लगभग नामुमकिन है द्य मेरठ शहर में घनी आबादी वाले क्षेत्र में सर्वेक्षण कर जल के संरक्षण के लिए निम्न सुझाव संस्था सदस्यों द्वारा प्रेषित हैं द्य
1. शहर में बने मकानों की छत पर टीन शेड लगाने के लिए मेरठ विकास प्राधिकरण से ली जाने वाली अनुमति की अनिवार्यता खत्म किये जाने की आवश्यकता है ताकि एक या एक से अधिक मकान जिनकी छत आपस में मिलती हैं वह टीन शेड लगाकर पतनाले द्वारा वाटर हार्वेस्टिंग कर सके।
2. घरों में अथवा किसी भी प्रकार के खुले स्थल में मेरठ विकास प्राधिकरण से टीन शेड लगाने की अनुमति लिए जाने की अनिवार्यता समाप्त कर पतनाले व वाटर हार्वेस्टिंग के सहारे जल का संचयन कर भूजल को बढ़ाने में सहायता प्रदान की जानी चाहिए तथा वाटर हार्वेस्टिंग के लिए सहयोग राशी प्रदान किये जाने का प्रवाधान भी होना चाहिए । इस प्रकार की व्यस्वस्थ देश भर में जहां जहां भूजल स्तर नीचे गिर रहा है वहां कराए जाने का आग्रह किया गया।
इस मौके पर संयुक्त व्यापार समिति मेरठ के अध्यक्ष नवीन अग्रवाल, महामंत्री विपुल सिंघल, कोषाध्यक्ष मनोज गुप्ता, उपाध्यक्ष सुशील रस्तोगी, विकास गोयल, मुकेश कुमार, अमित जैन आदि मौजूद रहे।

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