Friday, 22 April 2022

पृथ्वी दिवस के अवसर पर संवाद फाऊंडेशन और संवाद इंडिया के द्वारा पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में एक वर्चुअल विमर्श का किया आयोजन।

 

मेरठ 22 अप्रैल (CY न्यूज़) पृथ्वी दिवस के अवसर पर संवाद फाऊंडेशन और संवाद इंडिया के द्वारा पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में एक वर्चुअल विमर्श का आयोजन किया गया। इस आयोजन में पर्यावरणविद्, कवि और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सहभागिता कर अपने विचार व्यक्त किए। संवाद फाउंडेशन और संवाद इंडिया के अध्यक्ष प्रशान्त कौशिक ने कहा कि आज पृथ्वी दिवस मनाया जा रहा है। वैसे तो प्रत्येक दिवस, प्रत्येक पल ही पृथ्वी दिवस होता है, क्योंकि धरती मां सभी को अपने आंचल में समेटे हुए एक-समान अपना दुलार दे रही है, लेकिन मानव सभ्यता प्रकृति के साथ जिस प्रकार व्यवहार कर रही है, उससे पृथ्वी की आत्मा को सीधा-सीधा कष्ट हो रहा है, जिसका परिणाम मौसम चक्र पर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। अतः समय रहते मानव जाति को समझना होगा कि विकास के साथ प्राकृतिक संसाधनों को सहेजने की बेहद आवश्यकता है, तभी हम धरती मां के दुलार, प्यार से भरे आंचल में अपने को सुरक्षित रख पायेंगे। देश, विदेश में ख्याति प्राप्त कवि डॉ.ईश्वर चंद्र गम्भीर ने अपनी कविताओं के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण की महत्ता की बात कही। उन्होंने कहा कि "आबादी के परिणामों से सुलग रही है धरती, सारे वन उपवन रोते हैं, अब तो खुलके हँसे कुल्हाड़ी आरी।

अगर ना रोका हमने पानी झील और तालों में पानी फिर दो जगह मिलेगा ,आंख और छालों में"

पर्यावरणविद् डॉ.विजय पंडित ने कहा कि दूसरे ग्रहों पर जीवन की खोज करने से बेहतर हैं कि हम अपनी पृथ्वी को ही सुरक्षित कर रहने योग्य बनाये. "आज जबकि तेजी से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है और जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम चक्र में भी परिवर्तन हो रहा है तो ऐसी परिस्थितियों में हमें प्रत्येक दिवस पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। साहित्यकार डॉ.रामगोपाल भारतीय ने अपनी कविता के माध्यम से सन्देश देते हुए कहा कि:

विस्फोटों से गगन बड़ा है, हथियारों का मेला है, बंद घरों में दम घुटता है, वातावरण विषैला है, कहीं बाढ़ तूफान, कहीं पर कचरा और बीमारी है, मानव कृत कचरा धरती से सागर तक फैला है, अभी समय है संभल जाओ, मत जीवन को अंधेरा करो।

शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी शर्मा ने कहा कि पौधों को रोपने के साथ उनकी देखरेख करना बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्रायः यह देखा जाता है कि पौधारोपण तो हो जाता है, लेकिन देखरेख की कमी के कारण पौधे बढ़ नहीं पाते है और वह जल्दी ही सुख जाते हैं, इसलिए पौधारोपण के साथ उनको सहेजना भी बहुत आवश्यक है। क्रांतिधरा साहित्य अकादमी की अध्यक्षा पूनम पंडित ने काव्य पाठ के माध्यम से पर्यावरण के सन्दर्भ में अपने विचारों को व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि

धरती मेरे देश की, करती करूंण पुकार,  उजड़ा मेरा रूप है , सब मिल करो श्रृंगार। सब मिल करो श्रृंगार, उढाओ हरी चुनरिया, टांको सुरभित फूल, सजाओ खिलती कलियाँ।

तितली फूलों पर उड़े, करें भंवरें भी गुंजन, कोयल का सुन गान, झूम उठे मन उपवन। सुनके राग मल्हार, मेघ बरसे नित झम झम, पुलकित मन नाचे, बजे पायल की छम छम।

ओढ़ चुनरिया हरी, मगन मैं मोद मनाऊँ, अपने देश की कीर्ति पताका, विश्व में फहराऊँ। आ माँ, तुझे हरी चुनरिया ओढ़ा दूँ, जरा ठहरो, इसे फूलों से सजा दूँ। आशीष दो माँ धरा, अपनी सुता को,  तेरी रक्षा हित, निज जीवन वार दूँ। 

वर्चुअल विमर्श में सभी वक्ताओं ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य करने की बात कही। वर्चुअल विमर्श में मुख्य रूप से डॉ.ईश्वर चंद्र गम्भीर, प्रशान्त कौशिक, डॉ.विजय पंडित, डॉ.रामगोपाल भारतीय, लक्ष्मी शर्मा, पूनम पंडित शामिल रही।


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