निमोनिया को लेकर सावधान रहने की जरूरत डा.धीरज राज।
मेरठ 16 दिसंबर (चमकता युग) जनपद में सर्दी बढ़ गई है। ऐसे में बच्चों में खांसी-जुकाम के साथ-साथ निमोनिया का खतरा भी बढ़ जाता है। इस मौसम में बच्चों का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। लापरवाही घातक साबित हो सकती है। यह कहना है लाला लाजपत राय मेडिकल कालेज के वरिष्ठ परामर्शदाता डा.धीरज राजा का। डा.धीरज का कहना है-अक्सर लोग बच्चों की खांसी के प्रति लापरवाही कर देते हैं। कई बार यह बैक्टीरियल इंफेक्शन के कारण होती है। अगर इसका समय रहते सही तरह से इलाज न किया जाए तो यह गंभीर स्वास्थ्य समस्या पैदा कर सकती है। समय पर उपचार न होने पर निमोनिया तक होने का खतरा पैदा हो जाता है। निमोनियां में फेफड़े संक्रमित हो जाते हैं। इसके कई दुष्परिणाम हो सकते हैं। निमोनिया होने पर कई तरह के लक्षण नजर आते हैं और कुछ आसान उपायों के जरिए इससे खुद का बचाव कर सकते हैं। बच्चों में लक्षण पहचान कर चिकित्सक से करें संपर्क। डा.धीरज राज ने बताया सर्दी में बच्चों को निमोनिया का खतरा अधिक होता है। इस मौसम में बच्चों को ठंड से बचाना चाहिए। उन्हें पूरे कपड़े पहना कर रखें। कान ढककर रखें, सर्दी से बचाएं। उन्होंने बताया बच्चों में तेज सांस लेना, सीने में घरघराहट आदि भी निमोनिया का संकेत हो सकते हैं। खांसी, सीने में दर्द, बुखार और सांस लेने में मुश्किल निमोनिया के आम लक्षण हैं। उल्टी होना, पेट या सीने के निचले हिस्से में दर्द होना, कंपकपी, शरीर में दर्द, मांसपेशियों में दर्द भी निमोनिया के लक्षण है। पांच साल से कम उम्र के ज्यादातर बच्चों में निमोनिया होने पर उन्हें सांस लेने तथा दूध पीने में भी दिक्कत होती है और सुस्त भी हो जाते हैं। बच्चों की इम्यूनिटी मजबूत बनी रहे इसलिए जन्म के तुरंत बाद बच्चे को मां का पहला गाढ़ा दूध जिसे कोलेस्ट्रम कहते हैं अवश्य पिलाना चाहिए। उन्होंने कहा निमोनिया होने पर तुरंत चिकित्सक से परामर्श करें, खुद उपचार न करें।
निमोनिया से बचाव को चल रहा अभियान:
निमोनिया के प्रति सामाजिक जागरूकता पैदा करने के लिए भारत सरकार द्वारा सोशल अवेयरनेस एंड एक्शन टू न्यूटरलाइज निमोनिया सक्सेसफुली (“सांस”) अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के अंतर्गत आशा कार्यकर्ता गृह भ्रमण के दौरान पांच वर्ष तक के बच्चों में निमोनिया के लक्षण चिन्हित करेंगी और समुचित उपचार उपलब्ध कराएंगी।
बच्चों में निमोनिया होने के विभिन्न कारण:
कम वजन का होना, कुपोषण छह माह तक स्तनपान न कराया जाना, घरेलू प्रदूषण, खसरा एवं पी.सी.वी टीकाकरण न किया जाना, जन्मजात विकृतियां जैसे हृदय विकृति तथा अस्थमा निमोनिया की आशंका को बढ़ावा देते हैं।
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